बेमिसाल मुख्यमंत्री: सड़क चौड़ीकरण के लिए ढहा दी अपने ही मंदिर की दीवार


 


-पिता के अंतिम संस्कार में न जाने के बाद कायम की एक और नजीर


साबित किया कि मामला जनहित और विकास का हो तो मंदिर-मस्जिद का कोई मतलब नहीं


लखनऊ, 22 मई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर बताया कि फर्ज क्या है? गोरखपुर से सोनौली के लिए बन रहे फोरलेन के लिए उन्होंने गोरखनाथ मंदिर की दीवार को ढहा कर औरों के लिए एक नया मानक तय कर दिया। साथ ही एक बड़ा संदेश भी दिया। संदेश यह कि अगर विकास के लिए उनके मंदिर की दीवार ढहायी जा सकती है तो मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, मजार या किसी भी धार्मिक स्थल की भी।


हाल के दिनों में यह दूसरी बार है जब मुख्यमंत्री ने बड़ी नजीर कायम की है। इसके पहले अपने पिता के अंतिम संस्कार में न जाकर उन्होंने बताया कि राजधर्म क्या होता है? एक बड़े परिवार का मुखिया होने का क्या मतलब होता है? 


मालूम हो कि गोरखनाथ मंदिर का शुमार उत्तर भारत के प्रमुख मंदिरों में होता है। यह करोड़ों लोगों के आस्था का केंद्र भी है। यह उस नाथपंथ का मुख्यालय से जिससे योगी जी का ताल्लुक है। वह गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं।
गोरखपुर फोरलेन के रास्ते में आने वाले किसी और को अपने मकान और दुकान के ध्वस्तीकरण पर किसी को आपत्ति न हो इसके लिए इसके लिए मुख्यमंत्री होने के बावजूद उन्होंने अपने मंदिर की दीवार को ढहाने का आदेश दे दिया। बाकियों की दुकान और मकान के ध्वस्त होने पर बाया गोरखनाथ मंदिर, धर्मशाला, मोहद्दीपुर, कूड़ाघाट और नंदानगर होते हुए एयरपोर्ट तक का आना-जाना आसान हो जाएगा।


मुख्यमंत्री होने के बाद और बतौर सांसद वह बार-बार यह कहते रहे हैं कि जनहित और विकास एक दूसरे के पूरक हैं। इसमें किसी तरह की बाधा स्वीकार्य नहीं। लोक कल्याण के लिए विकास हर जनप्रतिनिधि का फर्ज है। योगी इसे लगातार साबित भी कर रहे हैं।