गोरखनाथ मंदिर से बिल्कुल अलग था मेले का माहौल

- बेफ्रिक और पूरी मस्ती के मूड में नजर आए लोग


- चंद घंटों के लिए वहां दुनिया-जहान को भुलाने वाली मनोरंजन की सारी चीजें उपलब्ध
 
- झूले, स्टूडियो, शूटिंग रेंज, खाने-पीने की दुकानें रहीं आकर्षण का केंद्र


गोरखपुर/लखनऊ। मंदिर के मुख्य परिसर में जहां आस्था और श्रद्धा भारी रही, वहीं परिसर के मैदान में लगे मेले का माहौल अलग रहा। बेफ्रिक और पूरी मस्ती का मूड। चंद घंटों के लिए सब कुछ भुला देने वाला। तरह-तरह के झूले, स्टूडियो, निशानेबाजी के स्टाल, खाने-पीने और चाट-पकौड़ी की दुकानें। 


तेज स्वर में बजते लाउडस्पीकर, स्टेज पर थिरकते कलाकार, रंगे-पुते जोकर, जगह-जगह लगे आकर्षक पोस्टर पूरे माहौल को सतरंगी बना रहे थे। झूले की रेंज खासी बढ़ी है। खासकर बच्चों के झूलों की। बड़ों के लिए चर्खी वाले बड़े झूले भी हैं। इन पर बैठकर लोग ऊपर-नीचे होने का मजा ले रहे थे तो ड्रैगन ट्रेन की सवारी का आनंद भी। नाव वाले झूले पर बैठकर हिचकोले खाने का मजा लेने वालों की संख्या भी कम नहीं थी।  


इस माहौल में बड़ों के साथ चल रहे बच्चों का मचलना आम बात है। फिर तो उनको मनाने के लिए उनकी पसंद के अनुसार बाइक, कार, हाथी, घोड़े और जिराफ की शक्ल में बने झूलों पर बैठाना मजबूरी थी। इनके लिए बाइक से लेकर कार और जीप पर फर्राटा भरने का भी इंतजाम भी था। ऐसे में लोग भी खुश थे और बच्चे भी। 


वहां जादू का इंद्रजाल था तो मौत के कुएं का रोमांच भी। इन सारे लमहों को यादगार बनाने के लिए लोग स्टूडियो में पसंद की ड्रेस और परिवेश (पहाड़, झरना और रेगिस्तान आदि) में फोटो भी खिंचवा रहे थे।


इन सबके लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। आप 5 के हों या 55 वर्ष या इससे भी ऊपर के। पास में पैसा है तो कोई फर्क नहीं पड़ता। आराम से निशानेबाजी का शौक पूरा करें, मनमाफिक झूले का आनंद लें। मन करे तो मौत के कुएं में कलाकारों का रोंगटे खड़ा करने वाला हैरतअंगेज कारनामा देखें या जादू का इंद्रजाल। मेले में चाइनीज फूड के स्टाल से लेकर पिज्जा, बर्गर, पावभाजी, डोसा, भेलपूरी, छोले-भटूरे और पापकार्न की दुकानें भी सजी हैं। मर्जी और स्वाद के अनुसार इनका भी आनंद लें। मेले की पहचान बन चुकी खजला की दुकानें तो मेला परिसर से लेकर मंदिर की ओर आने वाली हर सड़क पर दिखीं।