मुस्लिम तुष्टीकरण वाले दलों की चुप्पी व उनमें डर का वातावारण

माननीय सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ अयोध्या विवाद का सौहार्द्रपूर्ण समाधान करने में सफल हो चुकी है। 500 वर्षों से चला आ रहा अयोध्या विवाद 40 दिन की नियमित सुनवाई के बाद मात्र 45 मिनट में ही समाप्त हो गया। अयोध्या विवाद के सभी पक्षकारों ने फैसले का सम्मान किया था और उसे सहर्ष स्वीकार करने का ऐलान भी किया था। लेकिन इस फैसले के खिलाफ कटटरपंथी मुसलमान और उनके समर्थक तथाकथित राजनेताओंं को देष की यह षांति पसंद नहीं आ रही। मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी के मना करने के बावजूद और पूरे मामले मेें अब कोई विषेष दम नहीं होने के बाद भी  जिन नेताओं की नेतागिरि और वकीलों की वकालत की दुकानें बंदी के कगार पहुंच चुकी है। उन लोंगो ने एक बार फिर अयोध्या विवाद को पुनर्विचार याचिका के माध्यम से पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। अब यह लोग इस मामले में कितना सफल और असफल होते हैं । यह तो आने वाला समय बतायेगा लेकिन मुस्लिम पक्षकारों का यह कदम अपने तथाकथित आकाओं के  दम पर देष केे सुंदर सामाजिक समरसता के वातवारवण को बिगाड़ने की गहरी साजिषें हैं। 
अब मुस्लिम पक्षकार जमीयत-  उलमा- ए हिंद ने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड केे जफरयाब जिलानी भी अपनी याचिका लेकर एक बार फिर कोर्ट आ रहे हैं। वहीं हैदराबाद के संासद ओवैसी बंधु भी लगातार मस्जिद के समर्थन मेें बेहद आक्रामक बयान देकर वातवारण मेें व्याप्त षांति को अषांति में बदलने की पुरजोर कोषिष कर रहे हैं। मदनी और ओवेैसी जैसे लोग आज देष के लिये नासूर बन चुके हैं और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दलों ने कभी भी अभी  तक अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर के निमौण का समर्थन नहीं किया है। कांग्रेस ,सपा, बसपा और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस व वामपंथी दलों की रहस्यमयी चुप्पी देष के सामाजिक समरस वातवारण के लिये बेहद खतरनाक है। आज इन्हीं तथाकथित दलों के नेताओं व वकीलों के सहयोग से ही यह पुनर्विचार याचिकायें कोर्ट में दाखिल हो रही हैं। इससे साफ पता चल रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की सविंधान पीठ के जजों ने बहुमत के आधार पर जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया है वह इन लोगों को रास नहीं आ रहा है तथा एक बार फिर इन लोगों ने मामले को लटकाने- अटकाने और  भटकाने की साजिषें षुरू कर दी हैं। पहली बार अयोध्या विवाद को मध्यस्थता और नियमित सुनवई के माध्यम से समाप्त किया गया। अयोध्याविवाद के कई सारे पेंच समाप्त हो गये। अभी तक फिलहाल हिंदू पक्षकारों की ओर से कोई भी  याचिक नहीं जा रही है। जिससे पूरे देष ही नहीं अपितु पूरे विष्व मेें यह साफ संदेष चला गया है कि आखिरकार देष में षांति का पक्षधर कौन है और अषांति का वातावारण कौन से दल व असमाजिक तत्व पैदा करना चाह रहे हैं। 
ष्कोर्ट में पांच जजों और मध्यस्थता पैनल के समक्ष भी मुस्लिम पक्षकार अपने पक्ष में कोई सबूत व ठोस तर्क प्रस्तुत नहीं कर पाये थे तब वे पता नहीं किस आधार पर पुनर्विचार याचिका लेकर को गये हैं। यह लोग केवल अपनी दुकान चलाने के लिये कोर्ट जा रहे हैं। आज कांग्रेस काएक भी बयान कोर्ट के पक्ष में व राम मंदिर के समर्थन में सामने नहीं आया हैं। वहीं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , गृहमंत्री अमित षाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चुनावी जनसभाओं व मीडिया के समक्ष साक्षात्कारों में कहते हैं कि अब अगले तीन माह में ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण षुरू हो जायेगा और आकाष से भी ऊंचा भव्य राम मंदिर अतिषीघ्र ही बनकर तैयार हो जायेगा तब कांगं्रेस व तुष्टीकरण करने वाले दलों को सांप सूंघ जाता है। तब कांग्रेस सहित सभी दलों का बयान आता है कि भारतीय जनता पार्टी इस विवाद का चुनावी लाभ  उठाना चाहती हैं । आखिर भाजपा व संघ इस विवाद का लाभ क्यों न उठायें ? 
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद को लटकाये रखने के लिये क्या -क्या हथकंडें नहीं अपनाये? कांग्रेस के वकील ने तो कोर्ट में रामजन्मभूमि का नक्षा तक फाड़ दिया।  रही बात सपा और बसपा जैसे दलों की यह दल आज कल हर जगह डर- डर- डर का माहोल बताकर जनमानस को भड़काने का काम कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सपा मुखिया नेताओं को हिंदू जनमानस के समक्ष आकर सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिये थी। लेकिन वे यह लोग नहीं कर पा रहे । वर्तमान सपा मुखिया अखिलेष यादव को अपने दिनों को याद करना चाहिये  जब उनके पिता के राज में हर जिले जिले में हिंदुओं पर घोर अत्याचार हो रहे थे और अयोध्या में निहत्थे कारसेवकों को गोलियों से भूना गया था। 50 से अधिक जिलों में भयानक दंगे हुए थे और देखते ही गोली मारने के आदेष थे। सर्वाधिक  भय का वातावरण गैैर भाजपा सरकारों के कार्यकाल में ही रहा है। जब अखिलेष  यादव मुख्यमंत्री बने तब प्रदेष भर में रोज दंगे होते थे। हिंदु बहू बेटियों की अस्मत मुसलमान गुंडें लूटा करते थे और चारों तरफ अराजकता का वातावरण रहता था। यही हाल बसपा के षासन काल में भी होता था। इन सभी दलों ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सभी सीमाओं को लांघ कर रख दिया था। अयोध्या के राम जन्मभूमि स्थल को यह लोग बाबरी मस्जिद ही बताते थे। 
बसपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र से अलग हटकर अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनवाने की बात कही थी। फिर भला इन दलों को अयोध्या पर सुप्रीम फैसला क्योंं रास आयेगा? आज सुप्रीम फैसले के बाद सभी दल बेनकाब हो चुके हैं , वामपंथी इतिहासकार बेनकाब हो चुके हैं । अब सेकुलर ताकतों में एकमात्र यही डर व्याप्त हो गया है कि अब अयेाध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो गया तो यह दल मुस्लिम समाज के समक्ष कौन सा मुंह लेकर अपना वोट लेने के लिये जायेंगे। यह सभी दल बाबरी समर्थक और बेहद खतरनाक इरादों वाले हैं। पुनर्विचार याचिका का दायर होना इन सभी हिंदू विरोधी दलों की साजिष है तथा हिंदू जनमानस के साथ गहरा विष्वासघात है। सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका को किसी भी कीमत पर हल्के में नहीं लेना चाहिये। हिंदुओं की जनभावना के साथ कब कहां और कैसे छल हो जाये इस पर नजर रखना बहुत जरूरी और हिंदुओं को भी लगातार जागते रहना जरूरी है। 
आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक और मध्यस्थता के पैनल श्री श्री रविषंकर का भी कहना हैं कि अयोध्या विवाद अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका है तथा इसे सभी लोगों ने स्वीकार भी कर लिया है तथा उसके बाद मुस्लिम पक्षकारों का रवैया बेहद षर्मनाक व निराषाजनक है। अयोध्या विवाद पर इस ने प्रकरण में सबसे चर्चित पहलू यह है कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीष रावत की जमीयत के नेता मोलाना मदनी से क्यों गोपनीय बैठक हुई थी उसे वह सार्वजनिक करेंगे? नही ंतो अब हिंदू जनमानस हरीष रावत जेसेनेताओं को मुहतोड़ जवाब देने के लिये कमर कसकर तैयार हो रहा है। अब यही संदेष जा रहा है कि पुनर्विचार याचिक कांग्रेस व कटटरपंथी मुस्लिम नेताओं की साजिष ही है। यह साजिष भी किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दी जायेगी।
मृत्युंजय दीक्षित
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