‘‘अधूरे श्रृंगार वाली सत्ता‘‘

जबतक ना पड़े पिया की नजर श्रृगंार अधूरा रहता है। महाराष्ट्र में बेशक तीन दलों ने मिलकर सरकार बना ली परन्तु है तो एक इंजन वाली ही। डबल इंजन की सरकार शिवसेना पार्टी की हट के कारण नहीं बनी सकी। केन्द्र की सरकार की नजर जिस राज्य सरकार पर पूरी-पूरी न हो वहां का विकास पूरा-पूरा राज्य सरकारें नही कर पाती है ऐसा राज्य सरकारे कहती रही है। अब दूसरी महत्वपूर्ण बात की विचार धारा को ठेस पहुंचा कर सत्ता प्राप्त करना यह जनता के साथ धोखा ही कहा जाएगा। वोट तो नरेन्द्र मोदी के नाम पर मांगे और सरकार भाजपा का विरोध करने वाले दलों के साथ मिलकर बना ली यह वाजिब नहीं है। प्रधानमंत्री जी ने महाराष्ट्र की हर जनसभा में खुल्लेआम कहा कि दिल्ली में नरेन्द्र की सरकार आपने बनाई है महाराष्ट्र में पुन: देवेन्द्र की सरकार बनानी है आपको। एक नहीं पांच-पांच जनसभाओं में वह भी शिव सेना प्रखुख उद्धव ठाकरे के मंच साझा करने पर कही यही नहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष देश के यशस्वी गृहमंत्री अमित शाह जी ने भी उद्धव के सामने उपरोक्त बातें कहीं तब कभी शिव सेना ने 50-50 का जिक्र क्यों नहीं किया या विरोध क्यों दर्ज नहीं कराया। सत्ता में सत्य का होना उसी तरह जरूरी होता है जैसे दिन में सूर्य का। खैर सत्ता जब जनहित, राष्ट्रहित को छोड़ कर स्वार्थहित पुत्र मोह में चली जाती है तब-तब उसका परिणाम क्या होता है इस पर बात करते है। 29 अप्रैल 1946 के दिन कांग्रेस कार्यसमिति जो सम्पूर्ण देश का उस समय नेतृत्व कर रही थी उसने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया था कि सरदार पटेल को देश का प्रधानमंत्री बनाया जाये। 15 में से 12 राज्यों ने पटेल के पक्ष में वोट दिया 3 ने किसी को भी वोट नही दिया। सोचिये यदि नेहरू की जगह देश की बुलंद आवाज, पंसद पटेल प्रधानमंत्री होते तो देश आज कहां होता लेकिन नेहरू की जिद् ने देश की पंसद, देश के हित को गहरी खाई में धकेल दिया अब मोदी जी के रूप में वह बाहर निकलने में सफल हो सका है। देश के प्रथम राष्ट्रपति उस समय के कांग्रेस के दिग्गज डा. राजेन्द्र बाबू ने एक बार फिर इस जुमले का इस्तेमाल कर कहा था वह इस तथ्य की और था जब 1929, 1937, 1946 में नेहरू की खातिर सरदार पटेल को कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनने दिया गया था। उन्होंने कहा था चमकदार वाले नेहरू की खातिर अपने भरोसे बंद सिपाही का त्याग किया है। 70 वर्ष में देशहित से व्यक्तिहित, परिवारहित, जातिवाद, क्षेत्रवाद इतना बढ चुका है कि पूरे देश को उसका बढना सबका अहित करने वाला जान पड़ता है। भारतीय मनीषा ने मोह को सबसे बड़ा अज्ञान कहा है इस अज्ञान के कारण बड़ी क्षति हुई है भारत देश की। ''श्री रामचरित मानस की चैपाई बताती है-मोह निशा सब सौऊ निहारा-देखई स्वपन अनेक प्रकारा'' यानि मोह रूपी रात्रि में सब सौ रहे है और अनेक प्रकार के स्वपन देख रहे है। 


भारतीय राजनीति में 1947के बाद से जो हालात बने या बनाये गए उनसे देश को क्या मिला और राजनैतिक परिवारों को कहां पहुंचा दिया यह सब भारतवासियों ने चाहे अनचाहे देखा है, देख रहे है। देश को आजाद कराने के लिए सभी ने लड़ाई लड़ी, बलिदान दिये तब जाकर अग्रेजों से देश मुक्त हो सका। आजादी के बाद यू ही नहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि अब काग्रेस को भगंकर देना चाहिए और नई पार्टी नये नेतृत्व को आजाद भारत का नेतृत्व करना चाहिए। महात्मा गांधी यह मानते थे कि देश की आजादी में सबका योगदान है परन्तु नेहरू जी को यह मंजूर नहीं था। मोहम्मद अली जिन्ना को नेहरू मजूंर नहीं थे। जिन्ना की प्रधानमंत्री बनने की जिद और नेहरू की महत्वाकांक्षा ने देश का बंटवारा करवा दिया दोनों और से लांखों लोग मारे गए। अंगे्रेज जो चाहते थे इन दोनों की जिद ने पूरा कर दिया। देश का बंटवारा हो गया। जिन्ना पाकिस्तान के वजीरे आजम बन गए। भारत में प्रधानमंत्री कौन इसको लेकर कांग्रेस पार्टी में वोटिंग हुई सरदार बल्लभ भाई पटेल को सर्वाधिक 15 में 12 राज्यों ने सरदार पटेल का समर्थन किया। उल्लेखनीय है कि शेष 3 राज्यों ने किसी के पक्ष में वोट नही दिया। जवाहर लाल नेहरू को एक भी वोट नही मिला। महात्मा गांधी को फैसला बताया गया। नेहरू अड़ गए कि उनको ही प्रधानमंत्री बनना है बस गांधी जी को अब पटेल को बुलाकर नेहरू की जिद मानने के लिए मजबूर किया गया। यहां से लोकतंत्र की पूरी धूरी ही लोकतंत्र से घूम कर स्वार्थतंत्र, व्यक्तिवाद व परिवारवाद पर आकर टिक गई। अब तक भारतीय जनता पार्टी को छोड़ दे तो 100 प्रतिशत भारत की राजनीति इसपर अटकी हुई है। कांग्रेस में नेहरू परिवार गांधी परिवार, हो गया। जवाहर लाल नेहरू के बाद इन्दिरा गंाधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा उर्फ गांधी का दबदबा व सिक्का ही कांग्रेस में चल रहा है यह सिलसिला रूकने का नमा नहीं ले रहा है। सरदार पटेल के लोकतात्रिक चयन पर जब नेहरू की जिद हावी गइ तभी से भारतीय राजनीति व्यक्तिवाद, परिवारवाद, पूंजीवाद होते जातिवाद व क्षेत्रवाद के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। देश में यदि महान देश भगत संगठन आर.एस.एस. ना होता तो राम जाने क्या हो गया होता हमारे भारत का इन सभी वादों (व्यक्तिवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, पूंजीवाद) के खतरनाक परिणामों से देश को बचाने के लिए राष्ट्रवाद को आगे रखकर राजनीति को बढाने के लिए आर.एस.एस. ने 1967 में भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई। 1977 में राष्ट्रहित में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया। कांग्रेस को देश से उखाड़ फेंका। राष्ट्रहित से इत्तर आर.एस.एस. को कुछ भी मंजूर नही था अत: 1980 में राष्ट्रहित की राह से भटक चुकी जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया। तब से अबतक और आगे भी रहेगा राष्ट्रवाद सर्वोपरि। व्यक्तिवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद व पूंजीवाद ने देश में आंतकवाद व नक्कसलवाद को फलने फूलने मे मदद की है। देश के कोने-कोने में यहा तक की देश की राजधानी नई दिल्ली में भी आंतकवाद सिर चढकर बोलने लगा था। खुल्लेआम आंतकवादी निर्दोषों को मौत के घाट उतार रहे थे। नक्कसलवाद ने दर्जनों राज्यों में अपना नेटवर्क बना लिया थ। अपनी व अपने परिवाद की सत्ता बनी रहे यह मोह-लोभ देश हित पर भारी पड़ता गया। बात जम्मूकाश्मीर की करे तो शेख अब्दुला ने फारूख अबदुल्ला को फारूख ने उमर अबदुल्ला को ही देशहित समझा। दूसरे जम्मू कश्मीर में सईद ने अपनी बेटी मुफ्ती मोहम्मद सईद को ही देशहित समझा। आतंकवादियों से इनके रिश्ते क्या है और इनका पाकिस्तान प्रेम भी किसी से छूपा नहीं है। तुष्टिकरण की राजनीति जम्मू से शुरू होकर कन्याकुमारी तक फलने फूलने लगी जो भारत की कम पाकिस्तान की ज्यादा बात करेगा उसे ही धर्मनिरपेक्ष दल और जो केवल भारत की राष्ट्रवाद की बात करेगा उसको साम्प्रदायिक घोषित किया गया। भाजपा को अछूत पार्टी बना डाला था। कोई भी दल भाजपा के साथ जाने से परहेज करने लगा था। भाजपा सदा से व्यक्तिवाद, परिवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, आतंकवाद, नक्कसलवाद के खिलाफ ताल ठोके रही। धीरे-धीरे जनमानस ने भाजपा में अपना विश्वास व्यक्त किया। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकारें बनी। विपक्षी दलों ने यह भ्रम मुस्लिम में फैलाया हुआ था कि भाजपा सत्ता में आएगी तो मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देगी आदि-आदि। राज्यों में भाजपा की सरकारें चली कहीं कोई समस्या नहीं हुई बल्कि जो समस्याये थी जो जहर घोल दिया था इन परिवारवादी, जातिवादी, दलों ने उससे लोगों को बाहर निकालने में भाजपा कुछ हदतक सफल रही। लोकसभा में 2 सांसदों की पार्टी धीरे-धीरे 300 पार कर गई। भाजपा के राज में लोगों को भयमुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त, आतंकवाद मुक्त, शासन देखने को मिला। देश के लिए केवल अपने देश के लिए जीने मरने वाली पार्टी को क्रान्तिकारी, नेता नरेन्द्र मोदी का नेतृत्व मिला। नरेन्द्र भाई ने देश की प्रतिष्ठा  को सांतवें आसमान पर पहुंचा दिया है। आतंकवाद को उसकी औकात दिखा दी यही नहीं आतंकवाद की फसल लहलाने वाले देश पाकिस्तान को भी उसकी करतुतो का मुंहतोड़ जवाब दिया। लोगो को लगने लगा कि उनके लिए जीने मरने वाला नेता व पार्टी तो केवल भारतीय जनता पार्टी है और उसके नेता नरेन्द्र मोदी है। जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार, मुफ्ती परिवार, उत्तर प्रदेश में मुलायम परिवार, अजित सिंह परिवार, बिहार में लालू परिवार, पश्चिम में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडू उड़ीसा, आन्ध्रा, तेलगाना सब राज्यों में परिवारवाद की राजनीति होती रही है। ताजा उदाहरण महाराष्ट्र का हम सबके सामने है। शिवसेना ने हिन्दुत्व की राजनीति की। बाला साहब ठाकरे ने एक समय राज ठाकरे से पूरा काम लिया परन्तु पुत्र मोह में वह अपने बेटे उद्धव के सामने राजठाकरे को किनारे लगाने में नहीं चुके। शरद पवार ने अपने भतीजे अजीत पवार से सारा काम लिया लेकिन परिवार मोह में अपनी बेटी सुप्रिया सूले को अजीत पवार के सामने अपना उत्तराधिकारी बनाना चाह रहे है। अजीत पवार को चाहते तो कांग्रेस गठबंधन के समय मुख्यमंत्री बना सकते थे लेकिन अजीत पवार मजबूत न हो जाये यह उनकी इच्छा सर्वोपरि रही। यह बात बिल्कुल साफ है शायद कभी दूध का रंग सफेद से बदल जाये यह असंभव है परन्तु यदि यह संभव हो भी जाये तो भी कभी परिवारवाद, जातिवाद, व्यक्तिवाद ''राष्ट्रवाद'' से बड़ा नही हो सकता है। व्रिपो के मालिक अजीज प्रेमजी से जब किसी ने पूछा कि आपका उत्तराधिकारी तो आपका बेटा ही होगा तो उन्होंने क्या कहा जाने उन्होंने कहा जो मेरा उत्तराधिकारी होगा वही मेरा बेटा होगा। 


नरेन्द्र सिंह राणा


प्रदेश प्रवक्ता भाजपा 


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