क्या है मलमास ? करें ये काम, जीवन में मिलेगा लाभ।






एक सूर्य वर्ष 365 दिन और लगभग 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिन का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन वर्ष में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है।
अधिकमास को कुछ स्‍थानों पर मलमास भी कहते हैं। दरअसल इसकी वजह यह है कि इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।


पौराणिक मान्‍यताओं में बताया गया है कि मलिनमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्‍वयं श्रीहरि से उन्‍हें स्‍वीकार करने का निवेदन किया। तब श्रीहर‍ि ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्‍तम। तब से इस महीने को पुरुषोत्‍तम मास भी कहा जाता है। इस महीने में भागवत कथा सुनने और प्रवचन सुनने का विशेष महत्‍व माना गया है। साथ ही दान पुण्‍य करने से आपके लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं।


यह मास धर्म-कर्म के लिए बहुत ही ज्यादा फायदेमंद है। इस मास की खास बात यह है कि इसकी कथा विष्णु के अवतार नृःसिंह भगवान और श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है। इसी वजह से इस मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस माह में उक्त दोनों भगवान की पूजा करना चाहिए। पुरुषोत्तम भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। यदि आप इस मास का अच्छा फल पाना चाहते हैं साथ ही आप चाहते हैं कि आपके ऊपर भगवान विष्णु और कृष्ण की कृपा सदैव बनी रहे तो आपको इस मास में श्रीमद्भागवत गीता में पुरुषोत्तम मास का महामात्य, श्रीराम कथा वाचन, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र पाठ का वाचन और गीता के पुरुषोत्तम नाम के 14वें अध्याय का नित्य अर्थ सहित पाठ करना चाहिए। यदि आप काफी व्यस्त रहते हैं और आपके पास ज्यादा समय नहीं है तो आप भगवान के 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय', इस द्वादशाक्षर मन्त्र का प्रतिदिन 108 बार जप कर सकते हैं।

 

इस माह में आप जप तप के अलावा व्रत भी रख सकते हैं। यह भी इस त्यौहार को मनाने के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस मास में व्रत रखता है तो वह पूरे मास एक समय ही भोजन कर सकता है जोकि हमारी आध्यात्मिक और सेहत की दृष्टि से काफी ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। भोजन में गेहूं, चावल, जौ, मूंग, तिल, बथुआ, मटर, चौलाई, ककड़ी, केला, आंवला, दूध, दही, घी, आम, हर्रे, पीपल, जीरा, सोंठ, सेंधा नमक, इमली, पान-सुपारी, कटहल, शहतूत , मेथी आदि खाने का विधान हैं। इस मास में भगवान विष्णु ने अपनी कई तरह की लीलाएं दिखाई थी साथ ही आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मास में भगवान के दीपदान और ध्वजादान की भी बहुत महिमा है। यदि आप इस मास में किसी की मदद करते हैं या दान दक्षिणा करते हैं तो इसका फल आपको सदैव मिलता है। इस मास में दान पूर्ण करना बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है। पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान और दान करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं और हर प्रकार के कष्ट और परेशानियां हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं। इस मास में कई विशेष संस्कार किए जाते हैं जैसे कि रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज जलवा ,गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत इत्यादि। इस मास में आप किसी भी तरह का कार्य कर सकते हैं। आप चाहे तो इस माह में यात्रा कर सकते हैं। साझेदारी का कोई भी कार्य कर सकते हैं। मुकदमा लगाना, बीज बोना, वृक्ष लगाना, दान लगाना, सार्वजनिक हित के कार्य सेवा करने वाले किसी भी प्रकार का काम आप बिना डरे या बिना झिझके कर सकते हैं।