"कायस्थ भाजपा के लिए हुक्म के गुलाम हैं, तुरुप का इक्का नहीं"


- भाजपा ने कायस्थों को काटा, अपनों को दिल खोलकर बांटा
- भाजपा में कायस्थों की लगातार उपेक्षा पर है सपा की नजर
- सपा कार्यालय में कायस्थ सम्मेलन तक कराया गया
- अखिलेश ने आलोक रंजन व राहुल भटनागर को नौकरशाही का मुखिया बनाया


लखनऊ। भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा हो चुकी है। पंडित, ठाकुर और पिछड़ों की आरती उतारती भाजपा में कायस्थों के लिए कोई जगह नहीं बची है। कायस्थ भाजपा के बंधुआ वोटर हैं। कई ऐसे कायस्थ संगठन हैं जो सोशल मीडिया पर भाजपा का प्रचार प्रसार करने में जुटे रहते हैं लेकिन उनसे कोई एक बार ये पूछे कि भाजपा ने कायस्थों को कितना सम्मान दिया है तो वे बंगले झांकते नजर आयेंंगे। कुछ सिदार्थनाथ सिंह के नाम पर तर्क कुतर्क करेंगे लेकिन उस पर चर्चा फिर कभी।


आज भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी में हर बार की तरह इस बार भी कायस्थों को जगह नहीं मिली है। राजधानी में कायस्थों के वोट से बढ़त बनाने वाली भाजपा के लिए कायस्थ वोट सिर्फ जीतने भर के लिए है। देश के सबसे बड़े सूबे की प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी में किसी भी कायस्थ को जगह न मिलना कायस्थ कार्यकताओं को बेहद निराश करता है। अपना पूरा जीवन लगा देने वाले कायस्थ कार्यकर्ताओं को भाजपा ने जिस तरह से काटा है वह सभी कायस्थों के लिए चुनौती या चेतावनी है।


कायस्थों के लिए भाजपा का साफ संदेश है कि वह सिर्फ हुक्म के गुलाम ​हैं तुरुप का इक्का नहीं। कायस्थ अगर अभी भी एक न हुए तो वे हमेशा सत्ता से दूर रहेंगे। विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने में भाजपा को कभी भी कायस्थ चेहरे नजर नहीं आयेंगे। ये बात कहने में कोई संकोच नहीं कि अखिलेश यादव की सपा ने कायस्थों का मान रखा है। सपा ने दीपक रंजन के संयोजन में 11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश जी की जयंती पर बड़ा कायस्थ सम्मेलन कराया था। कायस्थों की ताकत को देखते हुए पूनम सिन्हा को लखनऊ लोकसभा सीट पर उतारा गया था। बताते चलें कि कायस्थों का यह सम्मेलन अखिलेश यादव ने पार्टी कार्यालय में करवाया था।


भाजपा सरकार ने नौकरशाहों में भी पंडित ठाकुर के समीकरण और जिलों में तैनाती में भी ठाकुर व पंडितों के जातीय समीकरण साधे हैं। अखिलेश यादव सरकार को जातीय सरकार का आरोप लगाने वाली भाजपा सरकार खुद जातियों के जाल में जकड़ी नजर आती है।  अखिलेश सरकार में आलोक रंजन और राहुल भटनागर मुख्य सचिव थे वहीं प्रदेश की भाजपा सरकार में किसी भी कायस्थ का यहां तक पहुंचना ही मुश्किल है।


सूचना सलाहकारों में भी पंडित व ठाकुर के समीकरण ध्यान में रखे गये डीजीपी के साथ ही कमिश्नर प्रणाली लागू करने में भी इसी समीकरण का ध्यान रखा गया। अब भी समय है कायस्थ संगठन जो खुद भाजपा का सिपाही कहते थकते नहीं है वो इस पर विचार करें। अपनी मांग पुरजोर तरीके से संगठन तक रखें और इतने मीठे भी न बनें कि हर कोई निगल ही जाये।  भाजपा में कायस्थों की लगातार उपेक्षा को अवसर के रूप में देखती सपा जहां राजेन्द्र प्रसाद और विवेकानंद जयंती मना रही है वहीं राजधानी की महत्वपूर्ण सीट पर कायस्थ उम्मीदवार भी उतारने जा रही है। सूत्रों के अनुसार पार्टी कायस्थों को जोडने की जोरदार मुहिम भी चलाने जा रही है।


(लेखक : श्री कमलेश श्रीवास्तव जी लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार हैं 7985108946, 7571883006)