संक्रमण (कोरोना) का भारत भ्रमण 

- संक्रमण (कोरोना) का भारत भ्रमण


वह दबे पांव विदेश से चला। सुरक्षित लैंड हुआ। एयरपोर्ट के टाॅयलेट से होता हुआ आर्यवीरों की महानगरी में आया। एक शहर से दूसरे शहर में उसके टहलते ही तहलका मचने लगा। वह नाक वालों की नाक से निकला और उसने सबकी नाक में दम कर दिया।


उसने दिल्ली, पुणे, इंदौर, चिन्नै और मुम्बई में अपनी धाक जमायी। फिर नवाबों के शहर लखनऊ में भी आ धमका। कैंट क्षेत्र के पुराने मकान से सटे एक बिजली के खम्बे के नीचे सब इक्ट्ठा हुए। उसके प्रोटोकाल में जैपनीस इंसेफ्लाइटिस व डेंगू के वायरस साथी पहले से मौजूद थे। इन्ट्रोडक्शन हुआ। ‘मैं कोरोना हूं मूल निवासी वुहान-चीन। वैसे मुझे प्यार से कोविड -19 भी कहते हैं।'... ‘मैं हूं डेंगू... ये जैपनीस इंसेफ्लाइटिस और ये स्वाइन फ्लू।' एक दूसरे से हाथ न मिलाकर, नमस्कार हुई I


प्रोटोकॉल का पूरा पालन- सब एक मीटर के डिस्टेंस में बैठ गए I... 'आज कल तो साहब आपके दुनिया भर में जलवे हैं। हमें तो कोई पूछ भी नहीं रहा है।’ कूड़े में मुंह मार रहे एक सुअर की पीठ पर बैठा जेई बोला, ‘विराजें सर। और आपको यहां पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई?’
       ‘नहीं, फ्लाइट से एक बुड्ढे के साथ आया था।... अरे चिकनगुनिया और बर्ड फ्लू नहीं दिखायी दे रहे हैं?’... ‘सर वह तो बीमार चल रहे हैं।’..‘ओह!’ स्वाइन फ्लू ने बात आगे बढ़ाई, ‘मेरी समझ में यह नहीं आता है कि वायरस इजाद तो इंसान करता है और तोहमत पशु पक्षियों पर मढ़ देता है। बीमारी कोई भी हो, बलि बेचारी मुर्गियों की ही ली जाती है। इस शहर में कुत्तों के काटने से और सांड़ के पटकने से कितने ही लोग वोटर लिस्ट और राशन कार्ड से अपना नाम कटा चुके हैं। इसके लिए कोई हो - हल्ला नहीं।


कोरोना ने हंसते हुए कहा, मुझे तो यह देखकर हंसी आती है कि मुझ जैसे अदृश्य जीव की खोज में पूरी दुनिया की पुलिस लगी हुई है। मुझसे डरकर लोग घरों में दुबक गये हैं। सब ही-ही कर हंसते हैं। तभी नीली बत्ती वाली सफेद गाड़ी सायरन बजाती गुजरती है। गाड़ी को देखकर सभी विदेशी वायरस सीरियस हो जाते हैं। वे वहां से निकलने की सोच ही रहे थे कि अचानक रुक गये। एक ने दूसरे को कोहनी मारकर सामने देखने का इशारा किया। सफेद गाड़ी में बैठे लोग थूकते जा रहे थे। सड़कों पर संक्रमण नाच रहा था।


कोरोना के पैर भी थिरकने लगे थे।...अभी वो मस्ती के मूड में पूरी तरह आ भी नहीं पाए थे कि कोविड -19 का सौतेला भाई हंता दौड़ा हुआ आया और बोला, भाई घर चलो, यहां लोगों की सांस की नली में पहले से पान - मसाले का पाउडर इतना ज्यादा ठुंसा हुआ है कि पैर रखने की जगह तक नहीं है। यही नहीं हाथ में चूने के साथ न जाने क्या रगड़ते हैं देहीं लाल हो जाती है। छींकते - छींकते दम निकल जा रहा है। कोरोना ने अपने जूतों के फीते टाइट किये और बोला, अच्छा दोस्तों अपने मरकज को लौटते हैं, जिन्दा बचे तो फिर मिलेंगे।....  (लेखक : प्रेमेंद्र श्रीवास्तव जी उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं 9415304676)